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मानसरोवर--मुंशी प्रेमचंद जी


तावान मुंशी प्रेम चंद
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छकौड़ी ने महिला के लिए अंदर से लोहे की एक टूटी, बेरंग कुरसी निकाली और लपककर उनके लिए पान लाया। जब वह पान खाकर कुरसी पर बैठीं, तो उसने अपने अपराध के लिए क्षमा माँगी! बोला बहनजी, बेशक मुझसे यह अपराध हुआ है; लेकिन मैंने मजबूर होकर मुहर तोड़ी। अबकी मुझे मुआफी दीजिए। फिर ऐसी खता न होगी।
देशसेविका ने थानेदारों के रोब के साथ कहा- यों अपराध क्षमा नहीं हो सकता। तुम्हें इसका तावान देना पड़ेगा। तुमने काँग्रेस के साथ विश्वासघात किया है और इसका तुम्हें दंड मिलेगा। आज ही बायकाट-कमेटी में यह मामला पेश होगा।
छकौड़ी बहुत ही विनीत, बहुत ही सहिष्णु था; लेकिन चिंताग्नि में तपकर उसका हृदय उस दशा को पहुँच गया था, जब एक चोट भी चिनगारियाँ पैदा करती है। तिनककर बोला- तावान तो मैं न दे सकता हूँ, न दूँगा। हाँ, दुकान भले ही बंद कर दूँ। और दुकान भी क्यों बंद करूँ, अपना माल है, जिस जगह चाहूँ, बेच सकता हूँ। अभी जाकर थाने में लिखा दूँ, तो बायकाट कमेटी को भागने की राह न मिले। जितना ही दबता हूँ; उतना ही आप लोग दबाती हैं।
महिला ने सत्याग्रह-शक्ति के प्रदर्शन का अवसर पाकर कहा- हाँ, जरूर पुलिस में रपट करो। मैं तो चाहती हूँ, तुम रपट करो। तुम उन लोगों को यह धमकी दे रहे हो, जो तुम्हारे ही लिए अपने प्राणों का बलिदान कर रहे हैं। तुम इतने स्वार्थांध हो कि अपने स्वार्थ के लिए देश का अनहित करते तुम्हें लज्जा नहीं आती ? उस पर मुझे पुलिस की धमकी देते हो! बायकाट-कमेटी जाय या रहे; पर तुम्हें तावान देना पड़ेगा; अन्यथा दुकान बंद करनी पड़ेगी।
यह कहते-कहते महिला का चेहरा गर्व से तेजवान हो गया। कई आदमी जमा हो गये और सब-के-सब छकौड़ी को बुरा-भला कहने लगे। छकौड़ी को भी मालूम हो गया कि पुलिस की धमकी देकर उसने बहुत बड़ा अविवेक किया है। लज्जा और अपमान से उसकी गरदन झुक गयी और मुँह जरा-सा निकल आया। फिर उसने गरदन नहीं उठाई।
सारा दिन गुजर गया और धोले की बिक्री न हुई। आखिर हारकर उसने दुकान बंद कर दी और घर चला आया।
दूसरे दिन प्रात:काल बायकाट-कमेटी ने एक स्वयंसेवक द्वारा उसे सूचना दे दी कि कमेटी ने उसे 101/- का दंड दिया है।

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